Pratidin Ek Kavita

गीत - गोपालदास नीरज

विश्व चाहे या न चाहे, 
लोग समझें या न समझें, 
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे। 
हर नज़र ग़मगीन है, हर होंठ ने धूनी रमाई, 
हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई, 
ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में 
कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई, 
फिर दियों का दम न टूटे, 
फिर किरन को तम न लूटे, 
हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे। 
विश्व चाहे या न चाहे॥ 
हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज़ बदले, 
साज़ ही केवल नहीं अंदाज़ औ' आवाज़ बदले, 
उन फ़क़ीरों-सिरफिरों के हमसफ़र हम, हमउमर हम, 
जो बदल जाएँ अगर तो तख़्त बदले ताज बदले, 
तुम सभी कुछ काम कर लो, 
हर तरह बदनाम कर लो, 
हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे। 
विश्व चाहे या न चाहे॥ 
नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली सियाही, 
दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाही, 
थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा पर 
है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाही, 
आदमी वह फिर न टूटे, 
वक़्त फिर उसको न लूटे, 
ज़िंदगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे। 
विश्व चाहे या न चाहे॥ 
हम न अपने आप ही आए दुखों के इस नगर में, 
था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफ़र में, 
किंतु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ से 
जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नज़र में, 
अब भले कुछ भी कहे तू, 
ख़ुश कि या नाख़ुश रहे तू, 
गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे। 
विश्व चाहे या न चाहे॥ 
इस सभा की साज़िशों से तंग आकर, चोट खाकर 
गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़िर 
और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुशकिलों की 
दे रहे हैं ज़िंदगी के साज़ को सबसे नया स्वर, 
मौर तुम लाओ न लाओ, 
नेग तुम पाओ न पाओ, 
हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे। 
विश्व चाहे या न चाहे॥

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।