Pratidin Ek Kavita

मुहाना | डॉ दामोदर खड़से 

मैं चाहता हूँ
ज्वालामुखी के मुहाने पर 
बैठकर लिखूं कविता...
पर सोचता हूँ
जो लिखता है कविता
क्या नहीं होता वह
ज्वालामुखी के मुहाने पर

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।