Pratidin Ek Kavita

चुप की साज़िश | अमृता प्रीतम

रात ऊँघ रही है...
किसी ने इनसान की
छाती में सेंध लगायी है 
हर चोरी से भयानक 
यह सपनों की चोरी है।
चोरों के निशान -
हर देश के हर शहर की
हर सड़क पर बैठे हैं 
पर कोई आँख देखती नहीं, 
न चौंकती है। 
सिर्फ़ एक कुत्ते की तरह 
एक जंजीर से बंधी 
किसी वक़्त किसी की 
कोई नज़्म भौंकती है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।