Pratidin Ek Kavita

'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो - साहिर लुधियानवी

'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो 
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न 
आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न 
ख़त्म करो तहज़ीब की बात 
बंद करो कल्चर का शोर 
सत्य अहिंसा सब बकवास 
हम भी क़ातिल तुम भी चोर 
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न 
आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न 
वो बस्ती वो गाँव ही क्या 
जिस में हरीजन हो आज़ाद 
वो क़स्बा वो शहर ही क्या 
जो न बने अहमदाबाद 
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न 
आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न 
'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो 
दोनों का क्या काम यहाँ 
अब के बरस भी क़त्ल हुई 
एक की शिकस्ता इक की ज़बाँ 
ख़त्म हुआ दोनों का जश्न 
आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।