Pratidin Ek Kavita

वापसी | केदारनाथ सिंह

आज उस पक्षी को फिर देखा 
जिसे पिछले साल देखा था 
लगभग इन्हीं दिनों 
इसी शहर में
क्या नाम है उसका 
खंजन 
टिटिहिरी, नीलकंठ 
मुझे कुछ भी याद नहीं 
मैं कितनी आसानी से भूलता जा रहा हूँ 
पक्षियों के नाम 
मुझे सोचकर डर लगा
आख़िर क्या नाम है उसका 
मैं खड़ा-खड़ा सोचता रहा 
और सिर खुजलाता रहा 
और यह मेरे शहर में 
एक छोटे-से पक्षी के लौट आने का विस्फोट था 
जो भरी सड़क पर 
मुझे देर तक हिलाता रहा।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।