Pratidin Ek Kavita

'एक लड़का' - इब्न-ए-इंशा 

एक छोटा-सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पंहुचा हुमकता हुआ
जी मचलता था एक-एक शै पर मगर
जेब खाली थी कुछ मोल ले न सका
लौट आया लिए हसरतें सैकड़ों
एक छोटा-सा लड़का था मै जिन दिनों

खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं तो इक-इक दुकां मोल लूं
आज चाहूं तो सारा जहां मोल लूं
नारसाई का जी में धड़का कहां?
पर वो छोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहां?

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।