Pratidin Ek Kavita

पालकी - कुँवर नारायण 

काँधे धरी यह पालकी
है किस कन्हैयालाल की?
इस गाँव से उस गाँव तक
नंगे बदन, फेंटा कसे,
बारात किसकी ढो रहे?
किसकी कहारी में फँसे?
यह क़र्ज पुश्तैनी अभी किश्तें हज़ारों साल की।
काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
इस पाँव से उस पाँव पर,
ये पाँव बेवाई फटे :
काँधे धरा किसका महल?
हम नींव पर किसकी डटे?
यह माल ढोते थक गई तक़दीर खच्चर-हाल की।
काँधे धरी यह पालकी है किस कन्हैयालाल की?
फिर, एक दिन आँधी चली
ऐसी कि परदा उड़ गया!
अंदर न दुलहन थी न दूल्हा
एक कौव्वा उड़ गया...
तब भेद जाकर यह खुला—हमसे किसी ने चाल की।
काँधे धरी यह पालकी ला ला अशर्फ़ी लाल की!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।