Pratidin Ek Kavita

मातृभाषा की मौत - जसिंता केरकेट्टा

माँ के मुँह में ही 
मातृभाषा को क़ैद कर दिया गया 
और बच्चे 
उसकी रिहाई की माँग करते-करते 
बड़े हो गए। 
मातृभाषा ख़ुद नहीं मरी थी 
उसे मारा गया था 
पर, माँ यह कभी न जान सकी। 
रोटियों के सपने 
दिखाने वाली संभावनाओं के आगे 
अपने बच्चों के लिए उसने 
भींच लिए थे अपने दाँत 
और उन निवालों के सपनों के नीचे 
दब गई थी मातृभाषा। 
माँ को लगता है आज भी 
एक दुर्घटना थी 
मातृभाषा की मौत। 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।