Pratidin Ek Kavita

कितना लंबा होगा झरना | गुलज़ार

कितना लंबा होगा झरना 
सारा दिन कोहसार पकड़ के नीचे उतरता रहता है 
फिर भी ख़त्म नहीं होता...!
सारा दिन ही बादलों में, ये वादी चलती रहती है 
न रुकती है, न थमती है 
बारिश का बर्बत भी बजता रहता है 
लंबी लंबी हवा की उंगलियाँ थकतीं नहीं 
जंगल में आवाज़ नदी की 
बोलते बोलते बैठ गई है 
भारी लगती है आवाज़ नदी की!!

कोहसार - पर्वतीय शृंखला
बर्बत -(शाब्दिक) बत्तख़ अर्थात हंस का सीना, एक बाजा, जो सितार की तरह होता है, परन्तु उसकी तुंबी बड़ी और लम्बाई कम होती है

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।