Pratidin Ek Kavita

तुम रहना नयन | अजय जुगरान 

जीवन के अंतिम क्षण में
जब काल बाँधें हथेलियाँ
एकटक जब हों पुतलियाँ
एकांत शयन में
तुम रहना नयन में!

जब टूटता श्वास खोले नई पहेलियाँ
और मन लौटे विस्मृत बचपन में
खेलने संग ले सब सखा सहेलियाँ
उस खेल के अंतिम क्षण में
तुम रहना नयन में!

जब यम अथक बहेलिया
जाल डाल घर उपवन में
ले जाए तन की सब तितलियाँ
सूदूर गगन में
तुम रहना नयन में!

जीवन के अंतिम क्षण में
जब क्षण की चमक हो क्षण में तमस
जब रुके जैसे रुके श्वास तब बस
एकांत शयन में
तुम रहना नयन में!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।