Pratidin Ek Kavita

नए साल पर | स्नेहमयी चौधरी 


दोपहर जिस समय 
थोड़ी देर के लिए स्थिर हो जाती है, 
चहल-पहल रुकती-सी जान पड़ती है, 
उस पार का जंगल गहरा हरा हो उठता है, 
अपने कामों की गिनती करते-करते 
जब सिर ऊपर उठाती हूँ— 
सूरज दूसरी दिशा में पहुँच चुकता है।

दिन सरक कर चिड़ियों के पंखों में 
दुबक जाता है। 
मैं अपने को वहीं बैठी पाती हूँ 
जहाँ सुबह थी। 

हर साल की तरह 
पिछले सारे अधूरे कामों की गड्डी की ओर से 
आँख बंद कर 
नया कुछ करने की सोचते-सोचते... 

एक दिन और ढल जाता है। 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।