Pratidin Ek Kavita

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा - मीना कुमारी नाज़

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा 
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा 
बुझ गई आस छुप गया तारा 
थरथराता रहा धुआँ तन्हा 
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं 
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा 
हम-सफ़र कोई गर मिले भी कहीं 
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा 
जलती-बुझती सी रौशनी के परे 
सिमटा सिमटा सा इक मकाँ तन्हा 
राह देखा करेगा सदियों तक 
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।