Pratidin Ek Kavita

डेमोक्रेसी क्या होती है? - अशोक चक्रधर

पार्क के कोने में 
घास के बिछौने पर लेटे-लेटे 
हम अपनी प्रियसी से पूछ बैठे— 
क्यों डियर! 
डेमोक्रेसी क्या होती है? 
वह बोलीं— 
तुम्हारे वादों जैसी होती है! 
इंतज़ार में, 
बहुत तड़पाती है, 
झूठ बोलती है 
सताती है, 
तुम तो आ भी जाते हो, 
ये कभी नहीं आती है! 
एक विद्वान से पूछा 
वह बोले— 
हमने राजनीति-शास्त्र 
सारा पढ़ मारा, 
डेमोक्रेसी का मतलब है— 
आज़ादी, समानता और भाईचारा। 
आज़ादी का मतलब 
रामनाम की लूट है, 
इसमें गधे और घास 
दोनों को बराबर की छूट है। 
घास आज़ाद है कि 
चाहे जितनी बढ़े, 
और गधे स्वतंत्र हैं कि 
लेटे-लेटे या खड़े-खड़े 
कुछ भी करें, 
जितना चाहें इस घास को चरें। 
और समानता! 
कौन है जो इसे नहीं मानता? 
हमारे यहाँ— 
ग़रीबों और ग़रीबों में समानता है, 
अमीरों और अमीरों में समानता है, 
मंत्रियों और मंत्रियों में समानता है, 
संत्रियों और संत्रियों में समानता है। 
चोरी, डकैती, सेंधमारी, बटमारी 
राहज़नी, आगज़नी, घूसख़ोरी, जेबकतरी 
इन सबमें समानता है। 
बताइए, कहाँ असमानता है? 
और भाईचारा! 
तो सुनो भाई! 
यहाँ हर कोई 
एक-दूसरे के आगे 
चारा डालकर 
भाईचारा बढ़ा रहा है। 
जिसके पास 
डालने को चारा नहीं है 
उसका किसी से 
भाईचारा नहीं है। 
और अगर वो बेचारा है 
तो इसका हमारे पास 
कोई चारा नहीं है। 
फिर हमने अपने 
एक जेलर मित्र से पूछा— 
आप ही बताइए मिस्टर नेगी। 
वह बोले— 
डेमोक्रेसी? 
आजकल ज़मानत पर रिहा है, 
कल सींखचों के अंदर दिखाई देगी। 
अंत में मिले हमारे मुसद्दीलाल, 
उनसे भी कर डाला यही सवाल। 
बोले— 
डेमोक्रेसी? 
दफ़्तर के अफ़सर से लेकर 
घर की अफ़सरा तक 
पड़ती हुई फटकार है! 
ज़बान के कोड़ों की मार है 
चीत्कार है, हाहाकार है। 
इसमें लात की मार से कहीं तगड़ी 
हालात की मार है। 
अब मैं किसी से 
ये नहीं कहता, 
कि मेरी ऐसी-तैसी हो गई है, 
कहता हूँ— 
मेरी डेमोक्रेसी हो गई है! 

What is Pratidin Ek Kavita?

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