Pratidin Ek Kavita

गेंद | राजेश जोशी

एक बच्चा करीब सात-आठ के लगभग
अपनी छोटी-छोटी हथेलियों में
गोल-गोल घुमाता एक बड़ी गेंद
इधर ही चला आ रहा है
और लो उसने गेंद को
हवा में उछाल दिया!
सूरज, तुम्हारी उम्र
क्या रही होगी उस वक़्त!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।