Pratidin Ek Kavita

गवैया | शहंशाह आलम 

गवैया अपनी पीड़ा को पूरी लय के साथ गाता है
आज वह न दुःख को बाँधता है न उदासी को
न धूप को न बादल को न अपनी आत्मा को
गवैया सेतु को गाता है उसके नीचे बहते जल को गाता है
रंग को गाता है शहद को गाता है नमक को गाता है
महुआ को गाता है जामुन को गाता है नीम को गाता है
गवैया अपनी धुन की गति और उतार-चढ़ाव में
गायन की शैली में बस अपने समय को गाता है
समय का यह रूपक किसका है जो दुःख से भरा है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।