Pratidin Ek Kavita

तेरा नाम नहीं | निदा फ़ाज़ली 

तेरे पैरों चला नहीं जो
धूप छाँव में ढला नहीं जो
वह तेरा सच कैसे,
जिस पर तेरा नाम नहीं?

तुझसे पहले बीत गया जो
वह इतिहास है तेरा
तुझको ही पूरा करना है
जो बनवास है तेरा
तेरी साँसें जिया नहीं जो
घर आँगन का दिया नहीं जो
वो तुलसी की रामायण है
तेरा राम नहीं

तेरा ही तन पूजा घर है
कोई मूरत गढ़ ले
कोई पुस्तक साथ न देगी
चाहे जितना पढ़ ले
तेरे सुर में सजा नहीं जो
इकतारे पर बजा नहीं जो
वो मीरा की संपत्ति है
तेरा श्याम नहीं
वह तेरा सच कैसे,
जिस पर तेरा नाम नहीं?

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।