Pratidin Ek Kavita

स्वप्न में प्रेम - बाबुषा कोहली

दूसरे दिनों से ज़रा ज़्यादा ही होती है हरारत उस सुबह की
रॉकेट-सा आसमान चढ़ जाता तापमान
यकायक भाप के जंगल में तब्दील होता
बाथरूम का आईना
कुल जमा तीन अक्षर भरते कुलाँचे चारों दिशाओं में
दिशाओं के चार से दस होते देर नहीं लगती
सारी दिशाएँ प्रेम का बहुवचन हैं
जब तक शिकारी तानता धनुष
ओझल हो जाता मायावी हिरण आँखों की चौंध में
स्वप्न नशे में धुत्त अफ़ीमची नहीं
किसी फ़रार मुजरिम की खोज में जागता सिपाही है
और तुम!
मेरी उनींदी काया में छुप के रहते हो ऐसे
कि जैसे 'ऑनेस्टी' में बेईमानी से 'एच' रहता है

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।