Pratidin Ek Kavita

पीछे से | अरुण कमल 

कितना साफ़ आकाश है 
पानी से पोंछा हुआ दूर ऊपर उठा उठता जाता नील 
बादलों के तबक कहीं-कहीं 
और इतने पंछी उठ रहे झुक रहे 
हवा बस इतनी कि भरी है सब जगह 
और एक चिड़िया वहाँ अकेली छोटी ठहरी हुई 
ज़िंदगी की छींट

कितना सुन्दर है संसार दिन के दो बजे 
मनोहर शान्त 
और यह सब मैं देख रहा हूँ गुलेल के पीछे से। 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।