Pratidin Ek Kavita

माँ का आशीर्वाद | अजेय जुगरान

दोनों छोर पर ऊपर - नीची
ढलान और घुमाव लिए
बीच में कुछ सीधी सपाट सड़क
और उस पर चलती मेरी माँ
देने को लिए अनेकों आशीर्वाद।

हर परिचित - अपरिचित
बच्चे के नमस्ते - प्रणाम पर
चाहे वो कितना ही सांकेतिक
पास या दूर से हो
“खुश रहो। जीते रहो।”
स्थिर होकर सही दिशा में बोलती
मानो निश्चित करना चाहती हो
कि नज़र मिला आँखों से
दिल में उतार दे अपना आशीर्वाद।

इसके चलते कालोनी के बच्चों ने
माँ का परिचय रखा वो आँटी जो देती हैं
“खुश रहो। जीते रहो।” का आशीर्वाद।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।