Pratidin Ek Kavita

 उक्ति | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

कुछ न हुआ, न हो। 
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल 
पास तुम रहो ! 

मेरे नभ के बादल यदि न कटे— 
चंद्र रह गया ढका, 
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे 
लेश गगन-भास का, 
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम 
हाथ यदि गहो। 

बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा— 
मंद सबों ने कहा— 
मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा— 
ज्ञान जहाँ का रहा, 
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम 
कथा यदि कहो।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।