करोना लॉकडाउन के दिनों में लिखी गई अशोक वाजपेयी की यह कविता, पृथ्वी और उसके बाशिंदों के लिए एक प्रार्थना तो है ही, पर साथ ही प्रकृति पर मनुष्य की गहरी निर्भरता का एक अनुस्मारक भी है।
Ashok Vajpeyi's poem, written during the Covid lockdown, is not only a prayer for the Earth and all its inhabitants but is also a reminder of the extent to which humanity depends on nature.
कविता / Poem – पृथ्वी का मंगल हो | Prithvi Ka Mangal Ho
कवि / Poet – अशोक वाजपेयी | Ashok Vajpeyi
पूरी कविता यहाँ पढ़ें / Read the full poem here - https://www.hindwi.org/kavita/ashok-vajpeyi-kavita-6
A Nayi Dhara Radio Production
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें।
एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार...
Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within.
A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...