Pratidin Ek Kavita

कार्निस पर -कुँवर नारायण 

कार्निस पर
एक नटखट किरण बच्चे-सी
खड़ी जंगला पकड़ कर,
किलकती है  “मुझे देखो!”

साँस रोके
बांह फैलाए खड़ा गुलमुहर...
कब वह कूद कर आ जाए उसकी गोद में!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।