Pratidin Ek Kavita

आरा मशीन - विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी


चल रही है वह
इतने दर्प में
कि चिनगारियाँ छिटकती हैं उससे
दौड़े आ रहे हैं
अगल-बगल के यूकिलिप्टस
और हिमाचल के देवदारु
उसके आतंक में खिंचे हुए
दूर-दूर अमराइयों में
पक्षियों का संगीत गायब हो गया है
गुठलियाँ बाँझ हो गई हैं
उसकी आवाज से
मेरा छोटा बच्चा देख रहा है उसे
कौतुक से
कि कैसे चलती है वह
कैसे अपने आप एक लकड़ी
दूसरी को ठेलकर आगे निकल जाती है
और अपना कलेजा निकालकर
संगमरमर की तरह चमकने लगती है
मेरा बच्चा देख रहा है अचरज से
अपने समय का सबसे बड़ा चमत्कार
तेज नुकीले दाँत
घूमता हुआ पहिया और पट्टा
बच्चा किलकता है ताली बजाकर
मैं सिहर जाता हूँ
अभी वह मेरे सीने से गुजरेगी
मेरे भीतर से एक कुर्सी निकालेगी
राजा के बैठने के लिए
राजा बैठेगा सिंहासन पर
और वन-महोत्सव मनाएगा।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।