Pratidin Ek Kavita

इन सर्दियों में | मंगलेश डबराल

पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं इन सर्दियों में भी सिहरता हूँ 
हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं
पिछली सर्दियों में मेरी माँ चली गई थी
मुझसे एक प्रेमपत्र खो गया था एक नौकरी छूट गई थी 
रातों को पता नहीं कहाँ-कहाँ भटकता रहा 
कहाँ-कहाँ करता रहा टेलीफ़ोन पिछली सर्दियों में 
मेरी ही चीजें गिरती थीं मुझ पर
इन सर्दियों में पिछली सर्दियों के कपड़े निकालता हूँ 
कंबल टोपी मोजे मफ़लर 
उन्हें ग़ौर से देखता हूँ 
सोचता हुआ पिछला समय बीत गया है 
ये सर्दियाँ क्यों होंगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।