Pratidin Ek Kavita

कविता | दामोदर खड़से

समय
जब कहीं
गिरवी हो जाता है
साँसें तब
कितनी भारी हो जाती हैं
आसपास दिखता नहीं कुछ भी
केवल देह दौड़ती है
बरसाती बादलों की तरह 
हाँफना भी भुला देती है थकान!

ऐसे में तब तुम
कविता की ताबीज
बाँहों पर बाँध लेना!

एक गुनगुनाहट 
छोटे-छोटे छंदों की
फुसफुसाहट
शब्दों की दस्तक 
और अपनी आहट
भीतर ही भीतर पा लेना!

कविता,
अँधेरी रातों को
चुभती विसंगत बातों को
देगी एक संदेश
और रह-रहकर 
टूटता समय
एक लड़ी बनकर
कभी सीढ़ी बनकर
तुम्हारे सामने 
जगमगाएगा
देखते-देखते हर गिरवी पल 
तुम्हारा अपना हो जाएगा...

कविता का ओर-छोर 
तुम अपने हाथों में
जगाए रखना...!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।