Pratidin Ek Kavita

हारे हुए बुद्धिजीवी का वक्तव्य | सत्यम तिवारी


हारे हुए बुद्धि जीवी का वक्तव्य
मैं माफ़ी माँगता हूँ
जैसे हिम्मत माँगता हूँ
मेरे कंधे पर बेलगाम वितृष्णाएँ
मेरा चेहरा हारे हुए राजा का
रनिवास में जाते हुए
मेरी मुद्रा भाड़ में जाते मुल्क की
नाव जले सैनिक का मेरा नैराश्य
मैं अपना हिस्सा
सिर्फ़ इसलिए नहीं छोडूँगा
कि संतोष परम सुख है
या मृत्यु में ही मुक्ति मिलती है
मैं खुली आँख से जीना
और बंद आँखों से मरना पसंद करूँगा
मैं काठ का एक घोड़ा
एक तीर का दूसरा शिकार
मेरे बुझने से पहले की लपट पर लानत हो
अगर रस्सी न हो तो
उसके बल को भी मैं ठोकर मारता हूँ
यह कौन ध्वजा उठाए
दुनिया को चपटी करता है
मैं नहीं मानता कि
मेरा कोई दुश्मन नहीं
मैं जाऊँगा तो
कम से कम
दो-चार को
अपने साथ लेता जाऊँगा

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।