राजेश जोशी की कविता 'धरती के इस हिस्से में', एक समुद्र तट का चित्रण करती है - जहाँ चिड़ियों, लहरों, मछलियों और पेड़ों की कई आवाजों के बीच भी एक गहरा एकांत है। साथ ही यह कविता हमसे यह भी पूछती नज़र आती है, कि आखिर यह एकांत अब हमारे लिए इतना दुर्लभ क्यों हो गया है?
Rajesh Joshi's poem 'Dharti Ke Is Hisse Mein' depicts a seashore - where amidst the sounds of birds, waves, fish, and trees, there is also a deep quietude. The poem also asks us as to why this quietude has become so rare for us today?
कविता / Poem – धरती के इस हिस्से में | Dharti Ke Is Hisse Mein
कवि / Poet – राजेश जोशी | Rajesh Joshi
पुस्तक / Book - Kavi Ne Kaha (Poems in Hindi) by Rajesh Joshi (Pg. 79)
संस्करण / Publisher - किताबघर प्रकाशन (2012)
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें।
एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार...
Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within.
A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...