Pratidin Ek Kavita

चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जाएगी | केदारनाथ सिंह

चट्टान को तोड़ो 
वह सुंदर हो जाएगी 
उसे और तोड़ो 
वह और, और सुंदर होती जाएगी 
अब उसे उठाओ 
रख लो कंधे पर 
ले जाओ किसी शहर या क़स्बे में 
डाल दो किसी चौराहे पर 
तेज़ धूप में तपने दो उसे 
जब बच्चे आएँगे 
उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे 
अब उसे फिर से उठाओ 
अबकी ले जाओ किसी नदी या समुद्र के किनारे 
छोड़ दो पानी में 
उस पर लिख दो वह नाम 
जो तुम्हारे अंदर गूँज रहा है 
वह नाव बन जाएगी 
अब उसे फिर से तोड़ो 
फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को 
उसे फिर से उठाओ 
डाल दो किसी नींव में 
किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे 
टिका दो उसे 
उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने 
अब लौट आओ 
तुमने अपना काम पूरा कर लिया है 
अगर कंधे दुख रहे हों 
कोई बात नहीं 
यक़ीन करो कंधों पर 
कंधों के दुखने पर यक़ीन करो 
यक़ीन करो 
और खोज लाओ 
कोई नई चट्टान! 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।