Pratidin Ek Kavita

वस्तुतः | भवानी प्रसाद मिश्र

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए।

यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेंड़
नदी की लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में
उपस्थित भविष्य में

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

तेज़ गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कड़ाके की सर्दी
ख़ून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

मुझे अपना
होना
ठीक-ठीक सहना चाहिए

तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिए

बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए

मैं जो हूँ
मुझे वही बनना चाहिए

धारा हूँ अन्तःसलिला
तो मुझे कुएँ के रूप में
खनना चाहिए
ठीक ज़रूरतमन्द हाथों से

गान फैलाना चाहिए मुझे
अगर मैं आसमान हूँ

मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रहा हूँ

जो हूँ
वही होने से डर रहा हूँ!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।