Pratidin Ek Kavita

इतने भले नहीं बन जाना साथी - वीरेन डंगवाल

इतने भले नहीं बन जाना साथी 
जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी 
गदहा बनने में लगा दी अपनी सारी कूवत सारी प्रतिभा 
किसी से कुछ लिया नहीं न किसी को कुछ दिया 
ऐसा भी जिया जीवन तो क्या जिया? 
इतने दुर्गम मत बन जाना 
संभव ही रह जाए न तुम तक कोई राह बनाना 
अपने ऊँचे सन्नाटे में सर धुनते रह गए 
लेकिन किंचित भी जीवन का मर्म नहीं जाना 
इतने चालू मत हो जाना 
सुन-सुन कर हरकतें तुम्हारी पड़े हमें शरमाना 
बग़ल दबी हो बोतल मुँह में जनता का अफ़साना 
ऐसे घाघ नहीं हो जाना 
ऐसे कठमुल्ले मत बनना 
बात नहीं जो मन की तो बस तन जाना 
दुनिया देख चुके हो यारो 
एक नज़र थोड़ा-सा अपने जीवन पर भी मारो 
पोथी-पतरा-ज्ञान-कपट से बहुत बड़ा है मानव 
कठमुल्लापन छोड़ो, उस पर भी तो तनिक विचारो 
काफ़ी बुरा समय है साथी 
गरज रहे हैं घन घमंड के नभ की फटती है छाती 
अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन 
जिस पर बिजली रह-रह अपना चाबुक चमकाती 
संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती 
इनकी असल समझना साथी 
अपनी समझ बदलना साथी

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।