इस कविता में नरेश सक्सेना हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति कोई मृत पदार्थ नहीं बल्कि एक जीता जागता पारितंत्र है, जिसका हर तत्व उसे संतुलन में रखने के लिए अपना पूरा कर्तव्य निभा रहा है। ऐसे में वह मानव जाति से पूछते हैं कि जहाँ प्रकृति निरंतर अपना फ़र्ज़ निभा रही है, वहीं मनुष्य की ज़िम्मेदारी कौन तय करेगा?
In this poem Naresh Saxena reminds us that nature is not just dead matter but a living, breathing ecosystem. All its elements are continuously playing their part in maintaining its equilibrium. In this context, he asks the human race, that whilst nature always plays its part, how will their responsibility get fixed?
कविता / Poem – पानी क्या कर रहा है | Paani Kya Kar Raha Hai
कवि / Poet – नरेश सक्सेना | Naresh Saxena
पुस्तक / Book - Kavi Ne Kahaa (Pg. 48)
संस्करण / Publisher - Kitabghar Prakasan (2014)
A Nayi Dhara Radio Production
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें।
एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार...
Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within.
A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...