Pratidin Ek Kavita

रेखते में कविता | उदय प्रकाश 

जैसे कोई हुनरमन्द आज भी 
घोड़े की नाल बनाता दीख जाता है 
ऊँट की खाल की मसक में जैसे कोई भिश्ती 
आज भी पिलाता है जामा मस्जिद और चाँदनी चौक में 
प्यासों को ठण्डा पानी

जैसे अमरकंटक में अब भी बेचता है कोई साधू 
मोतियाबिन्द के लिए गुलबकावली का अर्क

शर्तिया मर्दानगी बेचता है 
हिन्दी अख़बारों और सस्ती पत्रिकाओं में अपनी मूँछ और पग्गड़ के 
फ़ोटो वाले विज्ञापन में हकीम बीरूमल आर्यप्रेमी

जैसे पहाड़गंज रेलवे स्टेशन के सामने सड़क की पटरी पर 
तोते की चोंच में फँसा कर बाँचता है ज्योतिषी 
किसी बदहवास राहगीर का भविष्य 
और तुर्कमान गेट के पास गौतम बुद्ध मार्ग पर 
ढाका या नेपाल के किसी गाँव की लड़की 
करती है मोलभाव रोगों, गर्द, नींद और भूख से भरी 
अपनी देह का

जैसे कोई गड़रिया रेल की पटरियों पर बैठा 
ठीक गोधूलि के समय

भेड़ों को उनके हाल पर छोड़ता हुआ 
आज भी बजाता है डूबते सूरज की पृष्ठभूमि में 
धरती का अन्तिम अलगोझा

इत्तेला है मीर इस ज़माने में 
लिक्खे जाता है मेरे जैसा अब भी कोई-कोई 
उसी रेख़्ते में कविता।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।