Pratidin Ek Kavita

घोर अंधकार है | डॉ. श्यौराज सिंह 'बेचैन'

घोर अन्धकार है
बड़ी उदास रात है 
न मेल है न प्यार है। 
जलाओ दीप साथियो 
कि घोर अन्धकार है। 
सिसक रहा है चाँद अब 
तड़प रही है चाँदनी। 
गली-गली दरिद्रता 
सुना रही है रागनी। 
ज़िन्दगी गरीब की 
अमीर का शिकार है। 
जलाओ दीप.... 
कहाँ स्वतन्त्रता, कहाँ 
समाजवाद की लहर 


देश तेरी धमनियों में 
भर दिया गया है ज़हर 
कली-कली उदास 
बागवाँ ये क्या बहार है। 
जलाओ दीप... 
साधुओं का भेष आज 
डाकुओं का भेष है 
दुखीः बहुत और चन्द खुश 
तो क्या स्वतन्त्र देश है? 
साधना के म्यान में भी 
वासना कटार है। 
जलाओ दीप... 
जाति, धर्म, मज़हबों के
नाम पर लड़ाइयाँ
बेकसूरवार लोग 
सह रहे तन्हाइयाँ 
मन्दिरों और मस्जिदों 
की आड़ में प्रहार है। 
जलाओ दीप…
नींद की गिरफ्त में 
चली गयीं जवानियाँ 
क्रान्तिकारिता की शेष 
रह गयीं कहानियाँ 
हुकूमतों को जुल्म का 
नया नशा सवार है। 
जलाओ दीप... 
राग सब जुदा-जुदा 
सुना रही हैं जातियाँ 
जला हमारा खूने दिल 
न दीप हैं न बातियाँ 
स्वतन्त्रता समानता का 
बेसुरा सितार है। 
जलाओ दीप... 
दलित हनन 
नारी दहन
या क्रूरता का जिक्र हो 
उसी के सिर को दर्द है 
जिसे वतन की फ़िक्र हो 
पंजाब चैन से नहीं, 
बिहार वेकरा है। 
जलाओ दीप…
भूख बेबसी कीं 
मंडियों में बिक रही है लाज। 
राम-रावणों ने 
त्रस्त कर दिया दलित समाज । 
अनसुना बलात्कारिता – 
का चीत्कार है। 
जलाओ दीप…
नौकरी तवायफों-सी 
माँगती हैं दाम दो 
भलों की लिस्ट में 
रखा है रिश्वती के नाम को 
रोज़गार-दफ्तरों पै 
लग रही कतार है। 
जलाओ दीप… 
रोशनी की सुन्दरी के 
अपहरण को रोक दो। 
स्वयं सुदीप हो तुम्हीं 
तिमिर को दूर फेंक दो। 
अगर कबीर, बुद्ध, 
जायसी का 
इन्तज़ार है, तो
जलाओ दीप साथियो
कि घोर अन्धकार है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।