Pratidin Ek Kavita

विचार आते हैं - गजानन माधव मुक्तिबोध

विचार आते हैं— 
लिखते समय नहीं, 
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर 
सिर पर उठाते समय भार 
परिश्रम करत समय 
चाँद उगता है व 
पानी में झलमलाने लगता है 
हृदय के पानी में। 
विचार आते हैं 
लिखते समय नहीं, 
...पत्थर ढोते वक़्त 
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ 
साँप मारते समय पिछवाड़े 
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त!! 
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं 
नक़्शे बनते हैं भौगोलिक 
पीठ कच्छप बन जाते हैं 
समय पृथ्वी बन जाता है...

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।