Pratidin Ek Kavita

विश्व की वसुंधरा सुहागिनी बनी रहे | श्यौराज सिंह ‘बेचैन

गगन में सूर्य-चंद्र
और चाँदनी बनी रहे
चमन बना रहे
चमन की स्वामिनी बनी रहे।
कोयलों के
कंठ की माधुरी बनी रहे।
रागियों के–
अधरों की रागिनी बनी रहे।
गूँजते रहें
भ्रमर किसलयों की चाह में,
मेल-प्यार
हो अपार, ज़िंदगी की राह में
सब
तरु सरस रहें, न पात टूट भू गहें।
कली-कली–
की गोद, नित सुगंध से भरी रहे।
ये गिरी–
शिखर बने रहें, ये सुरसुरी बनी रहे।
भँवर को
चीरती चली, प्रगति ‘तरी’ बनी रहे।
छूतछात
जातिभेद की प्रथा नहीं रहे।
लोकतंत्र
हो सजीव, मनुकथा नहीं रहे।
गरज ये कि
तृतीय विश्व युद्ध नहीं चाहिए। 
विश्व की–
वसुंधरा सुहागिनी बनी रहे।
हवा सुचैन
शांति की सदा सुहावनी रहे।
नहीं रहे तो
देश की दरिद्रता नहीं रहे।
आदमी की आदमी से
शत्रुता नहीं रहे।
ये भुखमरी नहीं रहे,
ये खुदकुशी नहीं रहे।
देवियों की
देह की तस्करी नहीं रहे।
मनुष्यता
की भावना प्रबल घनी बनी रहे।
चमन बना रहे
चमन की स्वामिनी बनी रहे।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।