Pratidin Ek Kavita

कविता | कुँवर नारायण

कविता वक्तव्य नहीं गवाह है 
कभी हमारे सामने 
कभी हमसे पहले 
कभी हमारे बाद

कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता 
भाषा में उसका बयान 
जिसका पूरा मतलब है सचाई 
जिसकी पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान

उसे कोई हड़बड़ी नहीं 
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके 
जुलूसों की तरह निकले 
नारों की तरह लगे 
और चुनावों की तरह जीते
वह आदमी की भाषा में 
कहीं किसी तरह ज़िंदा रहे, बस।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।