Pratidin Ek Kavita

पानी को क्या सूझी | भवानीप्रसाद मिश्र 

मैं उस दिन 
नदी के किनारे पर गया 
तो क्या जाने 
पानी को क्या सूझी 
पानी ने मुझे 
बूँद-बूँद पी लिया 
और मैं 
पिया जाकर पानी से 
उसकी तरंगों में 
नाचता रहा 
रात-भर 
लहरों के साथ-साथ 
बाँचता रहा!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।