Pratidin Ek Kavita

हिंदी सी माँ | अजेय जुगरान

जब पर्दे खोलने पर
ठंड की नर्म धूप
पलंग तक आ गई
तो बड़ा भाई
गेट पर अटका हिंदी अख़बार
ले आया माँ के लिए।
तेज़ी से वर्तमान भूल रही माँ
अब रज़ाई के भीतर ही बैठ
तीन तकियों पर टिका पीठ
होने लगी तैयार उसे पढ़ने को।
सर पर पल्लू
माथे पर बिंदी
हृदय में भाषा
मन में जिज्ञासा
हाथ में हिंदी अख़बार
और उसे पढ़ने को
भूली ऐनक ढूँढती मेरी माँ
हिंदी कदाचित् नहीं भूलती
मातृभाषा सी प्यारी मेरी माँ।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।