Pratidin Ek Kavita

हवा में पुल | मदन कश्यप

हवा में पुल था
इसीलिए हवा का पुल था 
क्योंकि हवा का पुल ही 
हवा में हो सकता था 

(आप चाहें तो इस पाठ को बदल सकते हैं, वह इस प्रकार:
हवा का पुल था 
इसीलिए हवा में पुल था
क्योंकि हवा का पुल
हवा में ही हो सकता था)....

वैसे पुल के होने के लिए 
कहीं न कहीं धरती से उसका जुड़ा हुआ होना ज़रूरी होता है।

पुल क्या कोई भी ढाँचा
केवल हवा में नहीं होता 
हवा भी हवा में नहीं होती 
वह भी पृथ्वी के होने पर टिकी होती है 
अपनी जगह पर इस सच के होने के बावजूद
यह सच था
कि हवा का पुल हवा में था

लोग हवा की सड़क से हवा के पुल पर आते थे 
और उसे पार कर हवा की किसी दूसरी सड़क से 
किसी तीसरी तरफ़ चले जाते थे 
जब वे उसी पुल से वापस लौटते थे 
तब हवा का वही पुल नहीं होता था 
हर बार नयी हवा नया पुल बनाती थी

हवा के पुल पर चलते हुए लोगों को 
अक्सर यह पता नहीं होता था 
कि वे हवा के पुल पर चल रहे हैं 
उनके पैरों के नीचे कोई नदी भी तो नहीं दिखती थी 
हवा की एक नदी वहाँ होती थी 
मगर, वह हवा के पुल से इस तरह जुड़ी होती थी 
कि अलग से उसे पहचानना असम्भव होता था

इस तरह हवा में सब कुछ हवाई था 
उसके हवाई होने के भी कुछ अपने नियम थे 
इस हद तक बेकायदा था
कि बेकायदा नहीं था हवा में पुल

सारी चीज़ों की पहचान यही थी
कि वे अपनी-अपनी पहचान खो चुकी थीं 
आदमी के लिए यह तय करना कठिन हो रहा था
कि पहचान खोकर सब कुछ पा लेने 
और सब कुछ गँवाकर पहचान बचा लेने में
सही क्या है 
जो पहचान बचा रहे थे
वे चीज़ो के लिए ललचा रहे थे और जो चीज़ें हथिया रहे थे 
वे पहचान खोने पर पछता रहे थे

एक आपाधापी थी चारों ओर
कुछ लोग हवा का पुल पार कर 
हवा में जा रहे थे 
कुछ लोग हवा के पुल से लौटकर
हवा में आ रहे थे

हम ने भी कई-कई बार
हवा का पुल पार किया
हवा में कविता लिखी
हवा में क्रान्ति की
हवा को तरह-तरह से हवा देने की कोशिश की

हवा के पुल पर हमारे कदमों के निशान
इतने स्पष्ट और घने बनते थे
कि एक पल को ऐसा लगता
हवा का पुल कहीं पदचिह्नों का पुल न बन जाए 
पर दूसरे ही पल इस तरह नहीं होते थे वे निशान 
जैसे कभी थे ही नहीं

हवा में पुल
हवा होने के बाद भी हवा हो जाने वाला नहीं था
उसका न था कुछ ऐसा था
कि कई-कई हवाओं के गुज़र जाने के बावजूद
हवा में टिका हुआ था हवा का पुल !

What is Pratidin Ek Kavita?

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