Pratidin Ek Kavita

पुरुषार्थ | श्रद्धा उपाध्याय

क्या पुरुषार्थ के अधिकार क्षेत्र में शामिल हैं 
औरतें जो रचाती हैं रास 
औरतें जो पकड़ी रहती हैं आस 
औरतें जो अग्नि में तप्ती हैं 
औरतें जो मूड नेह में घटती हैं
औरतें जो उठाती हैं भांडे 
औरतें जो चलाती हैं चरखे 
औरतें जो घर चलाती हैं 
औरतें जो जूठन खाती हैं 
औरतें जो लहू में नहाती हैं
और जो धान लगती हैं 
औरतें जो तीज मनाती हैं 
मैं एक थकी हुई औरत हूँ 
मैं 16000 आदमियों को ब्याह कर
पुरुषोत्तम पर दाँव लगाना चाहती हूँ

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।