Pratidin Ek Kavita

ख़ुदाओं से कह दो | किश्वर नाहीद 

जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन बारिश की वो झड़ी लगे
जिसे थमना न आता हो,
लोग बारिश और आँसुओं में
तमीज़ न कर सकें

जिस दिन मुझे मौत आए
इतने फूल ज़मीन पर खिलें
कि किसी और चीज़ पर नज़र न ठहर सके,
चराग़ों की लवें दिए छोड़कर
मेरे साथ-साथ चलें
बातें करती हुई
मुस्कुराती हुई

जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन सारे घोंसलों में
सारे परिंदों के बच्चों के पर निकल आएँ,
सारी सरगोशियाँ जल-तरंग लगें
और सारी सिसकियाँ नुक़रई ज़मज़मे बन जाएँ

जिस दिन मुझे मौत आए
मौत मेरी इक शर्त मानकर आए
पहले जीते-जी मुझसे मुलाक़ात करे
मेरे घर-आँगन में मेरे साथ खेले
जीने का मतलब जाने
फिर अपनी मनमानी करे

जिस दिन मुझे मौत आए
उस दिन सूरज ग़ुरूब होना भूल जाए
कि रौशनी को मेरे साथ दफ़्न नहीं होना चाहिए!                                                                                                                      

अर्थ :
सरगोशियाँ- चुपके चुपके बातें करना, कानाफूसी 
नुक़रई- चाँदी-जैसा उज्ज्वल, वो चीज़ जो चाँदी से बनी हो
ज़मज़मे- स्पंदन
ग़ुरूब- सूरज का डूबना

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।