Pratidin Ek Kavita

मैंने कहा बारिश | शहंशाह आलम 

मैंने कहा बारिश
उसने कहा प्रेम
मैंने कहा प्रेम
उसने कहा पेड़
मैंने कहा पेड़
उसने कहा चिड़ियाँ
मैंने कहा चिड़ियाँ
उसने कहा जलकुंड
मैंने कहा जलकुंड
उसने कहा चंद्रमा
मैंने कहा चंद्रमा
उसने कहा उदासी
फिर मैंने कुछ नहीं कहा
देखा बादल उसकी उदासी को
अपने पानी से धो रहा था।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

मैंने कहा बारिश | शहंशाह आलम

मैंने कहा बारिश
उसने कहा प्रेम
मैंने कहा प्रेम
उसने कहा पेड़
मैंने कहा पेड़
उसने कहा चिड़ियाँ
मैंने कहा चिड़ियाँ
उसने कहा जलकुंड
मैंने कहा जलकुंड
उसने कहा चंद्रमा
मैंने कहा चंद्रमा
उसने कहा उदासी
फिर मैंने कुछ नहीं कहा
देखा बादल उसकी उदासी को
अपने पानी से धो रहा था।