Pratidin Ek Kavita

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए | अंजुम रहबर

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए

कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए

उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए

ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए

कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए

'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए | अंजुम रहबर

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए

कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए

उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए

ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए

कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए

'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए