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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
संकट | मदन कश्यप
अक्सर ताला उसकी ज़ुबान पर लगा होता है
जो बहुत ज़्यादा सोचता है
जो बहुत बोलता है
उसके दिमाग पर ताला लगा होता है
संकट तब बढ़ जाता है
जब चुप्पा आदमी इतना चुप हो जाए
कि सोचना छोड़ दे
और बोलने वाला ऐसा शोर मचाये
कि उसकी भाषा से विचार ही नहीं,
शब्द भी गुम हो जाएँ!