Pratidin Ek Kavita

यदि चुने हों शब्द | नंदकिशोर आचार्य 

जोड़-जोड़ कर
एक-एक ईंट
ज़रूरत के मुताबिक
लोहा, पत्थर, लकड़ी भी
रच-पच कर बनाया है इसे।
गोखे-झरोखे सब हैं
दरवाज़े भी
कि आ-जा सकें वे
जिन्हें यहाँ रहना था
यानी तुम।
आते भी हो
पर देख-छू कर चले जाते हो
और यह
तुम्हारी खिलखिलाहट से जिसे गुँजार
होना था
मक़्बरे-सा चुप है।
सोचो,
यदि यह मक़्बरा हो भी तो
किस का?
और ईंटों की जगह
चुने हों यदि शब्द!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

यदि चुने हों शब्द | नंदकिशोर आचार्य

जोड़-जोड़ कर
एक-एक ईंट
ज़रूरत के मुताबिक
लोहा, पत्थर, लकड़ी भी
रच-पच कर बनाया है इसे।
गोखे-झरोखे सब हैं
दरवाज़े भी
कि आ-जा सकें वे
जिन्हें यहाँ रहना था
यानी तुम।
आते भी हो
पर देख-छू कर चले जाते हो
और यह
तुम्हारी खिलखिलाहट से जिसे गुँजार
होना था
मक़्बरे-सा चुप है।
सोचो,
यदि यह मक़्बरा हो भी तो
किस का?
और ईंटों की जगह
चुने हों यदि शब्द!