Pratidin Ek Kavita

औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’ 

किसी आँख में लहू है-
किसी आँख में पानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
पैदा हुई थी जिस दिन-
घर शोक में डूबा था।
बेटे की तरह उसका-
उत्सव नहीं मना था।
बंदिश भरा है बचपन-
बोझिल-सी जवानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
तालीम में कमतर है--
बाहरी हवा ज़हर है।
लड़का कहीं भी जाए-
उस पर कड़ी नज़र है।
उसे जान गँवा कर भी-
हर रस्म निभानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
कभी अग्नि परीक्षा में-
औरत ही तो बैठी थी।
होती थी जब सती तो-
औरत ही तो होती थी।
उसी जुल्म की बकाया--
पर्दा भी निशानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
कानून समाजों के-
एकतरफा नसीहत है।
जिसे दिल से नहीं चाहा-
वही प्यार मुसीबत है।
दौलत-पसन्द दुनिया-
मतलब की दीवानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
अब वक़्त है वो अपने-
आयाम ख़ुद बनाये।
तालीम हो या सर्विस-
अपने हकूक पाये।
मिलजुल के विषमता-
की दीवार गिरानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
ससुराल सताये फिर-
मुमकिन ही नहीं होगा।
स्टोव जलाये फिर-
मुमकिन ही नहीं होगा।
दिन-चैन के आएँगे-
यह रात तो जानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’

किसी आँख में लहू है-
किसी आँख में पानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
पैदा हुई थी जिस दिन-
घर शोक में डूबा था।
बेटे की तरह उसका-
उत्सव नहीं मना था।
बंदिश भरा है बचपन-
बोझिल-सी जवानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
तालीम में कमतर है--
बाहरी हवा ज़हर है।
लड़का कहीं भी जाए-
उस पर कड़ी नज़र है।
उसे जान गँवा कर भी-
हर रस्म निभानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
कभी अग्नि परीक्षा में-
औरत ही तो बैठी थी।
होती थी जब सती तो-
औरत ही तो होती थी।
उसी जुल्म की बकाया--
पर्दा भी निशानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
कानून समाजों के-
एकतरफा नसीहत है।
जिसे दिल से नहीं चाहा-
वही प्यार मुसीबत है।
दौलत-पसन्द दुनिया-
मतलब की दीवानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
अब वक़्त है वो अपने-
आयाम ख़ुद बनाये।
तालीम हो या सर्विस-
अपने हकूक पाये।
मिलजुल के विषमता-
की दीवार गिरानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।
ससुराल सताये फिर-
मुमकिन ही नहीं होगा।
स्टोव जलाये फिर-
मुमकिन ही नहीं होगा।
दिन-चैन के आएँगे-
यह रात तो जानी है।
औरत की गुलामी भी-
एक लम्बी कहानी है।