Pratidin Ek Kavita

तुमसे मिलकर | गौरव तिवारी 

नदी अकेली होती है,
पर उतनी नहीं
जितनी अकेली हो जाती है
सागर से मिलने के बाद।
धरा अत्यधिक अकेली होती है
क्षितिज पर,
क्योंकि वहाँ मान लिया जाता है
उसका मिलन नभ से।
भँवरा भी तब तक
नहीं होता तन्हा
जब तक आकर्षित नहीं होता
किसी फूल से।
गलत है यह धारणा कि
प्रेम कर देता है मनुष्य को पूरा 
मैं और भी अकेला हो गया हूँ,
तुमसे मिलकर।


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

तुमसे मिलकर | गौरव तिवारी

नदी अकेली होती है,
पर उतनी नहीं
जितनी अकेली हो जाती है
सागर से मिलने के बाद।
धरा अत्यधिक अकेली होती है
क्षितिज पर,
क्योंकि वहाँ मान लिया जाता है
उसका मिलन नभ से।
भँवरा भी तब तक
नहीं होता तन्हा
जब तक आकर्षित नहीं होता
किसी फूल से।
गलत है यह धारणा कि
प्रेम कर देता है मनुष्य को पूरा
मैं और भी अकेला हो गया हूँ,
तुमसे मिलकर।