Pratidin Ek Kavita

हम ओर लोग  | केदारनाथ अग्रवाल 

हम
बड़े नहीं
फिर भी बड़े हैं
इसलिए कि
लोग जहाँ गिर पड़े हैं
हम वहाँ तने खड़े हैं
द्वन्द की
लड़ाई भी
साहस से लड़े हैं;
न दुख से डरे,
न सुख से मरे हैं;
काल की मार में
जहाँ दूसरे झरे हैं,
हम वहाँ अब भी
हरे-के-हरे हैं।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

हम ओर लोग | केदारनाथ अग्रवाल

हम
बड़े नहीं
फिर भी बड़े हैं
इसलिए कि
लोग जहाँ गिर पड़े हैं
हम वहाँ तने खड़े हैं
द्वन्द की
लड़ाई भी
साहस से लड़े हैं;
न दुख से डरे,
न सुख से मरे हैं;
काल की मार में
जहाँ दूसरे झरे हैं,
हम वहाँ अब भी
हरे-के-हरे हैं।