Pratidin Ek Kavita

बरसों के बाद | गिरिजा कुमार माथुर 

बरसों के बाद कभी
हम-तुम यदि मिलें कहीं
देखें कुछ परिचित-से
लेकिन पहिचाने ना।
याद भी न आये नाम
रूप, रंग, काम, धाम
सोचें यह संभव है
पर, मन में माने ना।
हो न याद, एक बार
आया तूफान ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को
पढ़ने की ठाने ना।
बातें जो साथ हुई
बातों के साथ गई
आँखें जो मिली रहीं
उनको भी जानें ना।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बरसों के बाद | गिरिजा कुमार माथुर

बरसों के बाद कभी
हम-तुम यदि मिलें कहीं
देखें कुछ परिचित-से
लेकिन पहिचाने ना।
याद भी न आये नाम
रूप, रंग, काम, धाम
सोचें यह संभव है
पर, मन में माने ना।
हो न याद, एक बार
आया तूफान ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को
पढ़ने की ठाने ना।
बातें जो साथ हुई
बातों के साथ गई
आँखें जो मिली रहीं
उनको भी जानें ना।