Pratidin Ek Kavita

पिता | विनय कुमार सिंह 

ख़ामोशी से सो रहे पिता की
फैली खुरदुरी हथेली को छूकर देखा
उन हथेलियों की रेखाएं लगभग अदृश्य हो चली थीं 
फिर उन हथेलियों को देखते समय 
नज़र अपनी हथेली पर पड़ी
और एहसास हुआ 
न जाने कब उन्होंने अपनी क़िस्मत की लकीरों को 
चुपचाप मेरी हथेली में 
रोप दिया था 
अपनी ओर से कुछ और जोड़कर

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

पिता | विनय कुमार सिंह

ख़ामोशी से सो रहे पिता की
फैली खुरदुरी हथेली को छूकर देखा
उन हथेलियों की रेखाएं लगभग अदृश्य हो चली थीं
फिर उन हथेलियों को देखते समय
नज़र अपनी हथेली पर पड़ी
और एहसास हुआ
न जाने कब उन्होंने अपनी क़िस्मत की लकीरों को
चुपचाप मेरी हथेली में
रोप दिया था
अपनी ओर से कुछ और जोड़कर